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शुक्रवार, 26 मार्च 2010

वीआइपी मूवमेंट

वीआइपी मूवमेंट
'मूवमेंट' शब्द का शाब्दिक अर्थ 'आन्दोलन' होता है मगर हर शब्द का अर्थ काल और परिस्थिति के अनुसार बदल जाता है. यहाँ पर मेरी समझदारी के अनुसार 'मूवमेंट' शब्द का अर्थ 'हलचल' हो सकता है. इसलिए 'वीआइपी मूवमेंट " का अर्थ है कि बहुत महत्वपूर्ण आदमी कि हलचल. ये बहुत ही महत्व के आदमी वो होतें हैं जिनका कद कुर्सी के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है. वैसे ये सजीव प्राणी होते हुए भी पॉँच साल तक कोई हलचल नहीं करते ये भी दुनिया का आठवां आश्चर्य है . यह इनका अप्राकृतिक गुण है जो प्रकृति विज्ञानं के सारे सिद्धांतों को तोड़ कर इनके शरीर में प्रवेश कर कर चूका है लेकिन सजीव प्राणी होने के नाते कभी कभी हलचल करके यह सिद्ध करना पङता है कि ये अभी जिंदा है. यह हलचल इस प्राणीजगत में प्रति पॉँच वर्षों के बाद एक विशेष परिस्थिति में होती है जो प्राकृतिक मौसम नहीं होता फिर भी इस प्राणी जगत कि पूरी प्रकृति बदल देता है.
उस मौसम को लोकतान्त्रिक विज्ञानं में 'चुनाव' कहतें है . इस चुनावी मौसम कि सुगबुगाहट शुरू होती है जिसे आप पुरे देश में और विशेषकर दिल्ली की सड़कों पर देख सकतें है.

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

दरमियाँ

बाजरे की फसल और
मेरे दादा की उम्र के दरमियाँ 
एक सावन 
दो रोटी 
गोरे बालू के टीले की 
छाती पर खडा 
खेजडी का कंकाल था 
गवाह मुजरिम और ज़ज
हर खुशी गम  का हिसाब 
इसकी जडो के सुखी छाल पर
छपा था 
एक अनगढ़ भाषा में 
बच्चपन  में दोनों अनजान थे 
अकाल और साहूकार से 
बाजरे के पेड़ और बारिश की बूंद 
दो दलाल है 
उम्र के 
एक को बढ़ना 
दुसरे को घटना 

बुधवार, 1 अप्रैल 2009


जीवन की जदोजहद में


कहाँ जरूरत थी


'जय हो' गाने की


 रोटी की लडाई में


कहाँ फुर्सत थी

रविवार, 15 फ़रवरी 2009

वो तो एक आंचल था
क्यो डाला उस पर
पर्दा ???????
पागल भी था
क्यों दी उसे
कलम ????
स्वप्न था
क्यों दी उसे
जमीन????????
बीज था
क्यों दिया उसे
पानी ????
शराब थी
क्यों दिया
प्याला????????
आप बे ख़बर थे
वो गुलजार हो गया
अब हवा चली तो
खुशबू से क्यों डरते हो ???????

शनिवार, 31 जनवरी 2009

मेरी माँ

मेरी माँ
अलग है थोडी
दुनियाँ से
काला रंग
मिटी से सना शरीर
सर पर
गोबर
बिखरे बाल
पसीने से लर बतर
चहरे पर झुरिया
फटे कपड़े
वात्सल्य का सुखा समंदर
हाथों में छाले
पहले
अपने बाप के लिये
बाद में
मेरे बाप के लिये
अब
मेरे लिये
ढिबरी लिये
खोजती रही
चंद रोटी के टुकड़े
दौलत की गलियों से
झांक कर देखो
करोड़ों मांए है
शायद मेरी भी
उन में एक हो




मैच

आज दो काम हुए
एक भारत मैच जीता
दूसरा
रामू के बच्चा हुआ
और
आज ही रामू ने
खरीदा
एक बैट
मगर
उसकी बीवी को
प्रोटीन की कमी है
वाह रे मैच
आदमी को...................

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

उस रोज़
चंद लोग आए
मेरे गाँव में
सब की आंखों में
एक आशा थी
मग़र
वो आए और
चले गए
कुछ नही दिया
बस कहा
हम हिंदू है
वो मुसलमान
गाँव के लोग
कुछ नही समझे
मै और
मेरे दोस्त
आजकल पहरा देते है
रोकने के लिये
हम जानते है
वो दुबारा आगे
और कहेंगे
हम अलग अलग है