Ads for Indians

सोमवार, 23 अगस्त 2010

कैसे बाज आयें कबूतरबाज

विदेश में नौकरी दिलाने का झांसा देकर पैसे हड़पने की घटनाएं रोज सामने आनी लगी हैं। बाहरी देशों में जाकर मजदूरी करने वाले मजदूरों में ज्यादातर मजदूर खाड़ी देशों में जातें हैं और खाड़ी देशों में रोजगार दिलाने वाले कबूतरबाजों का जाल पूरे देश में फैला हुआ है। पिछले दिनों में लीबिया में 116 भारतीयों को बंधक बनाने की खबरें आयीं हैं जिन्हें कबूतरबाजों द्वारा अच्छी पगार और बेहतर रोजगार का झांसा देकर लीबिया भेजा गया, जहां पर अच्छी तनख्वाह तो दूर खाना तक नहीं दिया गया। ऐसे वाकयात बहुत से बेरोजगारों के साथ हाते रहते है। कबूतरबाजी के इस धंधे में ज्यादातर गरीब मजदूर फंसतें हैं क्योंकि एक ओर तो देश में रोजगार की कमी है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में और दूसरी बात यह है कि मजदूरी के लिये विदेश भेजने की सरकारी स्तर पर कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसी स्थिति में सच्चाई जानते हुए भी मजदूरों को इन कबूतरबाजों का सहारा लेना पड़ता है जो लाखें रूपये लेकर ठगते हैं। ये सबसे पहले तो बेरोजगारों को अच्छी पगार और बेहतर रोजगार के सपने दिखातें हैं और नहीं मिलने पर पैसे वापस करने के खोखले वादे भी करतें हैं। जब इन मजदूरों की विदेशों में दुर्दशा होती है, बेहतर रोजगार तो दूर कम्पनीयों और मालिकों द्वारा मानवीय व्यवहार भी नहीं किया जाता तो बहुत से मजदूर तो वापस लौट आतें हैं और जो नहीं लौटतें है उनकी स्थिति दयनीय होती है। जब वापस लौटकर पैसा मांगतें हैं तो कबूतरबाज पैसा वापस करने से इंकार कर देते हैं। ऐसी स्थिति में पीड़ित पक्ष अगर कानून की शरण में जाता है तो भी उन्हें कोई फायदा नहीं होता है क्योंकि कानून को सबूत चाहिये और मजदूरो व ठगी कबूतरबाजों के बीच कोई लिखित समझौता तो होता नहीं है और बहुत से मामलों में तो गवाह पेश करना भी मुश्किल हो जाता है, तब कबूतरबाज आराम से कानून की पकड़ से बच जातें हैं। इन कबूतरबाजों का जाल गांवों से लेकर बड़े शहरों तक फैला हुआ है जिसकी गिरफ्त में अधिकतर बेरोजगार युवा आते हैं। यह समस्या न केवल कबूतरबाजों द्वारा लोगों को ठगने की है बल्कि यह मुख्यरूप से समाज की उन हालातों की और संकेत करती है जो एक ओर तो ऐसे ठगी लोगों के पनपने का रास्ता साफ करती है, दूसरी ओर लोगों को इनके पास जाने को मजबूर भी करती है जिसके कारण बड़े पैमाने पर श्रम का शोषण होता है।
देश में संसाधनों का बंटवारा कुछ इस प्रकार से हुआ है कि खुशहाली कुछ मुटठीभर लोगों के हिस्से में चली गई और समाज के एक बड़े तबके को बदहाली की स्थिति में जीना पड़ रहा है। मगर इससे भी बड़ा सवाल है कि आबादी लगातार बढ़ती जा रही है और संसाधन सिमित हैं, ग्रामीण क्षेत्र में नए रोजगारों का सृजन नहीं हो रहा है जबकि परम्परागत रोजगार के साधन दिनोंदिन घटते जा रहें हैं। इस पूरे परिदृश्य ने युवाओं के सामने चनौती खड़ी कर दी कि आखिर वो क्या करंे ? यहीं से बहुत सी समस्याओं का जन्म हो जाता है जिन्हें आज हम हमारे चारों ओर के समाज में देखतें हैं और इन कबूतरबाजों का मामला भी उसी का हिस्सा है। जबकि पुलिस व प्रशासन को इन कबूतरबाजों के बारे में पूरी जानकारी रहती है क्योंकि लोगों के संवादों में ये इतने प्रचारित किये जातें हैं कि प्रशासन को आराम से पता चल जाता है। इस पर भी प्रशासन अगर यह तर्क देता है कि उन्हें पता भी नहीं था कि ऐसा कोई धंधां चल रहा है तो सवाल उठता है कि पता क्यों नहीं था ? शिकायत दर्ज होने के बाद भी इन कबूतरबाजों द्वारा लगातार लोगों को ठगा जाये तो जाहिर है कि ये कोई आम ठग या लूटेरे नहीं है बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सक्षम व ताकतवर लोगों का गिरोह है जो अपनी शक्ति का गलत उपयोग करके लोगों को ठगता रहता है। एक गरीब बेरोजगार 1 लाख रूपये देकर नौकरी के लिये जाता है और उसे इस प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है, यह बहुत ही गम्भीर मामला है जिस पर कोई राजनीतिक बातचित नहीं हो रही है। हो सकता है कि इन कबूतरबाजों के तार स्विस बैंक में जमा भारतीय पूंजी तक हो या बहुत से नेता व प्रशासनिक अधिकारीयों की मिलीभगत हो, अपराधीयों को देश से बाहर जाने में भी ऐसे लोगों का हाथ हो सता है जिसकी जांच होनी चाहिए।
इस समस्या का हल करने का पहला तरिका तो है कि देश में ग्रामीण क्षेत्रों में नये रोजगारो का सृजन किया जाये ताकि बेरोजगारों को विदेशों की तरफ रूख ही न करना पड़े और दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि लोगों के साथ ठगी और धोखाधड़ी करने वाले इन कबूतरबाजों के प्रति प्रशासन कड़ा रूख अपनाये ताकि एक बेरोजगार को अमावीय यातनाओं से बचाया जा सके। अगर समय रहते इन कबूतरबाजों पर अंकुश नहीं लगाया गया तो ये आज तो श्रम को विदेशों में बेच रहें है कल पूरे देश को ही बेच खायेंगे।