Ads for Indians

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

दरमियाँ

बाजरे की फसल और
मेरे दादा की उम्र के दरमियाँ 
एक सावन 
दो रोटी 
गोरे बालू के टीले की 
छाती पर खडा 
खेजडी का कंकाल था 
गवाह मुजरिम और ज़ज
हर खुशी गम  का हिसाब 
इसकी जडो के सुखी छाल पर
छपा था 
एक अनगढ़ भाषा में 
बच्चपन  में दोनों अनजान थे 
अकाल और साहूकार से 
बाजरे के पेड़ और बारिश की बूंद 
दो दलाल है 
उम्र के 
एक को बढ़ना 
दुसरे को घटना 

बुधवार, 1 अप्रैल 2009


जीवन की जदोजहद में


कहाँ जरूरत थी


'जय हो' गाने की


 रोटी की लडाई में


कहाँ फुर्सत थी