मेरी माँ
अलग है थोडी
दुनियाँ से
काला रंग
मिटी से सना शरीर
सर पर
गोबर
बिखरे बाल
पसीने से लर बतर
चहरे पर झुरिया
फटे कपड़े
वात्सल्य का सुखा समंदर
हाथों में छाले
पहले
अपने बाप के लिये
बाद में
मेरे बाप के लिये
अब
मेरे लिये
ढिबरी लिये
खोजती रही
चंद रोटी के टुकड़े
दौलत की गलियों से
झांक कर देखो
करोड़ों मांए है
शायद मेरी भी
उन में एक हो