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शनिवार, 12 जून 2010

गहलोत बजट: पुराने ढर्रे पर

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 2010-11 के बजट को पेश कर फिर से अपनी पुरानी छवि दर्शा दी। यह एक ऐसा मौका था जब भाजपा आंतरिक कलह से जूझ रही थी और गहलोत लोक हितकारी बजट पेश करके बाजी मार सकते थे। मगर बजट को देखने से साफ जाहिर होता है कि इस बजट में आम आदमी को किसी प्रकार की राहत देने के बजाय बिजली पर दस पैसे प्रति यूनिट का सरचार्ज लगा दिया है। एक ओर तो किसानों को आठ घंटे भी बिजली नहीं मिलती है, ऊपर से 10 पैसे प्रति यूनिट सरचार्ज।
राज्य में लगभग 7372 गांवो पर अकाल का साया मंडरा रहा है और बजट में राहत के नाम पर किसानों को फूटी कोड़ी तक नहीं मिली है। साथ ही कृषि क्षेत्र में नए कनेक्शन के लिए करोड़ो रुपए सरकार ने पहले ही किसानों से जमा कर रखे हैं, मगर अभी तक कनेक्शन देने की कोई घोषणा नहीं की गई है। इस बजट में वैट की न्यूनतम दर भी 4 फीसदी से बढ़ाकर 5 फीसदी कर दी गई है जिसके कारण वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी होगी। मंहगाई के इस दौर में वैट दर में 1 प्रतिशत की वृद्धि परोक्ष रूप से मंहगाई को बढ़ावा देने वाली है। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार अगर यह दर लागू हो जाएगी तो 100 आम जरूरतों की वस्तुओं में वृद्धि होगी जिससे आम आदमी के जीवन पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा। राज्य के 2010-11 के बजट में साफ जाहिर है कि मुख्यमंत्री ने किसानों व आम जनता के बजाय व्यापारिक वर्गों की सुध ली है उन्हे टैक्स के सरलीकरण की सुविधा के साथ-साथ टैक्स टर्नओवर 10 लाख रुपए से घटा कर पांच लाख रुपए करने जैसी छुटें प्रदान की हैं। हालांकि युवा वर्ग के लिए कुछ जिलों में स्वरोजगार प्रशिक्षण देने की घोषणा की गई है मगर लाखों युवा वसुंधरा सरकार की तरह एकमुश्त भरती का सपना देख रहे हैं, जिसका इस बजट में कोई नामोनिशान नहीं है।
एक प्रकार से देखा जाए तो यह बजट गहलोत के पिछले बजटों से मिलता जुलता ही है जब मंहगाई व बेरोजगारी का स्तर कम था। राजस्थान के एक पिछड़ा राज्य होने के नाते अगर इस बजट को देखा जाए तो एक अलग सी घोषणा दिखाई देती है, वो घोषणा है कि गुर्जरों समेत चार समुदायों के छात्रों के लिए इस बजट में 25 करोड़ रुपए का पैकेज दिया गया है। इस पैकेज के पीछे भी गुर्जर आंदोलन व राजनैतिक इच्छाओं के संकेत हैं। राज्य की अधिकांश जनता कृषि पर निर्भर है और बहुत बड़े हिस्से पर इस साल अकाल है, मगर अकाल के लिए कोई घोषण व पैकेज इस बजट में नहीं दिखाई देता है। पहले राजस्थान में एक आम धारणा बन गई थी कि जब राज्य सरकार एक पार्टी की होती है तो केन्द्र सरकार दूसरी पार्टी की होती है, अतरू राजस्थान केन्द्र से उचित फंड हासिल नहीं कर पाता है मगर 2010-11 के बजट ने इस धारणा को चकनाचूर करके रख दिया है क्योंकि राज्य व केन्द्र दोनो में ही कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकारें हैं, फिर भी बजट की स्थिति देखें तो इससे अच्छा बजट इस बार नितिश कुमार का रहा है।