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सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

प्रवासी मजदूर मताधिकार अभियान

बिहार की खराब हालत के कारण लोगों का पलायन वर्षों से लगातार जारी है, इस पलायन में दिन प्रतिदिन बढ़ोत्तरी ही हो रही है, वहीं दूसरी तरफ बिहार सरकार को विकास की सरकार के नाम से प्रचारित किया जा रहा है। 2007, 2008 एंव 2009 के दौरान बेगुसराय, कुसहा एंव सीतामढ़ी में तटबंध टूट कर बिहार में सैलाब आए। इसी सरकार के दौरान 2009 में बिहार के कुछ जिले एंव 2010 में अधिकांश ज़िले सूखे की चपेट में आए। राहत की घोषणाएँ तो बहुत हुईं लेकिन पीड़ितों तक कितनी राहत पहुँची यह एक विवाद का विषय है। इस वर्ष भी राज्य एक ओर तो भीषण सूखे की चपेट में है वहीं दूसरी ओर सारण में गंडक नदी पर बना तटबँध टूट गया है और दर्जनों गाँव बाढ़ के ख़तरे से जूझ रहे हैं। तटबँधों के रख-रखाव के मामले में शासन पूरी तरह से असफल साबित हो रहा है।
1990 के भूमण्डलीकरण के कारण एंव पिछले 10 सालों से लगातार बाढ़ व सूखे के कारण पलायन प्रतिशत में और एजाफा हुआ। दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता जैसे शहरों में बिहारी प्रवासी मजदूरों की संख्या बहुत अधिक है, पंजाब जैसे राज्य में खेती के लिए खास तौर पर बिहार से खेत मजदूर बुलाए जाते हैं।
राज्य में मनरेगा एंव बी.पी.एल. जैसी सभी सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं की हालत दयनीय है। अगर हम बिहार की शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, सिंचाई, बिजली आपूर्ति जैसे मुद्दों की बात करें तो पता चलता है कि पिछले 5 वर्षों में भी कोई सार्थक प्रयास नहीं हुए है। अगर बिहार को बाढ़ और सूखे से बचाया गया होता और आम लोगों को सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं का लाभ मिला होता तो आज बिहार से इतनी अधिक संख्या में लोगों का पलायन न हो रहा होता।
बिहार से पलायन कर दूसरे शहरों में रोज़गार के लिए जाने वालों की संख्या लगातार बढ़ती हुई दिखती है, जिसका सही आंकड़ा किसी के पास भी मौजूद नहीं है। दूसरे शहर में रह कर काम करने वाले ये असंगठित क्षेत्र के मजदूर हमारे जनतंत्र में अपने मताधिकार का प्रयोग भी नहीं कर पाते हैं। चूँकि अन्य शहरों से बिहार वापस जाकर वोट देना इन मजदूरों के लिए संभव नहीं, इसलिए इनके मुद्दे भी चुनाव में शामिल नहीं होते। ऐसा महसूस होता है मानो बिहारी मज़दूरों को अन्य शहरों में सम्मान के साथ जीने का कोई अधिकार ही नहीं है। इन मजदूरों पर जब कभी किसी भी प्रकार का हमला होता है, उस समय कोई राजनैतिक पार्टी या राजनेता ज़ुबानी जमाख़र्च के अलावा कोई सार्थक प्रयास नहीं करते। कोई बिहारी अस्तित्त्व पर सम्मेलन कर देता है तो कोई नारेबाज़ी तक अपने आप को सीमित रखता है। न ही उन प्रदेशों में प्रभावी तौर पर कोई अन्य दल मज़दूरों के साथ खड़ा होता है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह लगती है कि इन प्रवासी मज़दूरों का इस जनतंत्र में कहीं वोट देने का अधिकार ही नहीं है। अपने इलाक़े से पलायन कर रोज़गार की तलाश में देश के किसी भी कोने में जाने वाले ये असंगठित क्षेत्र के मज़दूर चुनाव के समय न तो अपने शहर वापस जा कर वोट दे पाते हैं और न ही जिन शहरों में वे काम कर रहे हैं वहाँ उनको वोट देने का अधिकार होता है। शहर के ऐसे तमाम लोग जो चुनावी प्रतियाशियों को वोट देकर कामयाब बनाने का अधिकार नहीं रखते, हमारी जनतांत्रिक व्यवस्था ऐसे लोगों को रोज़गार, राशन, बिजली, पानी और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत ज़रूरतों से भी वंचित रखतीे है। दूसरे शब्दों में जनतंत्र में वही जी पाता है जो जनतंत्र का हिस्सा है।
पलायन के लिए ज़िम्मेदार मज़दूर नहीं सरकार की नाकामियाँ और इच्छा-शक्ति का अभाव हैं। सरकार की नाकामियों के कारण लोगों से उसके मतदान का हक़ छिन जाए तो नागरिकता और जनतंत्र दोनों ख़तरे में दिखाई देते हैं।
जनतंत्र में केवल उनका सम्मान किया जाता है जो वोट देते हों, जिनका वोट नहीं होता उनके मुद्दे हमेशा दबे रह जाते हैं।
पिछले दिनों में हमारी बातचीत के दौरान इस समस्या के समाधान के लिये निम्न सम्भावनाएं सामने आयी:-
1. मजदूर जहां पर रहते है, ज्यादा से ज्यादा संख्या में उन्हें वहां का मतदाता बनाया जाये। या
2. लोकसभा, विधानसभा और पंचायत चुनावों में आने जाने का यात्रा भता दिया जाये। या
3. मजदूर जहां पर रह रहे हैं वहां पोस्टल बैलेट की व्यवस्था की जाये। या
4. मजदूर के रहने के स्थान पर पोलिंग बूथ लगाये जायें। या 5. इसके अलावा सम्भावनाओं को तलाश किया जाए।
इस समस्या के बाबत हम चुनाव आयोग को ज्ञापन भी दे चुके हैं और आने वाले समय में बिहार विधानसभा चुनावों के 6 चरणों के दौरान दिल्ली में मजदूरों से अपील भी कर रहे हैं कि बिहार जा कर ज्यादा से ज्यादा मतदान में भाग लें, फिर भी जो मजदूर चुनाव में शामिल नहीं हो पाऐंगे वह चुनाव आयोग को पत्र लिख कर इस बात की सूचना देंगे कि वह अपने मताधिकार का प्रयोग दिल्ली में रहने की वजह से नहीं कर पा रहे हैं, यही हमारे वोट हैं इन्हें स्वीकार करें अर्थात चिट्ठी के माध्यम से चुनाव आयोग को अपना वोट दर्ज करायेंगे।

अंतिम चरण के चुनाव के दिन 20 नवम्बर 2010 को मतपत्र के रूप में सभी पत्र चुनाव आयोग को सोंपे जायेंगे ,
बिहार बाढ़ विभीषिका समाधान समिति के सदरे अलम ने बताया कि इस अभियान कि अपील सभी राजनैतिक दलों को भेजी जाएगी , अमन ट्रस्ट के जमाल किदवई ने बताया कि हाल ही में ए एन सिन्हा संस्था (पटना) कि एक रिपोर्ट आई है , जिसमे बताया गया है कि बिहार के ३० % मत दाता पलायन कर गए हैं जो चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे उनके मुताबिक श्रीनगर में एक लाख से अधिक बिहारी मजदूर हैं जो वोट नहीं करते