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बुधवार, 9 जून 2010

दक्षिण एषिया जल विवाद- सियासी चाल

एषिया महाद्वीप में दक्षिण एषिया की राजनीतिक स्थिरता एक महत्वपूर्ण अध्याय है क्योंकि यह क्षे़त्र प्राकृतिक व राजनैतिक रूप से सम्पूर्ण एषिया की धूरी है। ऐसी स्थिति में दक्षिण एषिया की हर राजीतिक हलचल का प्रभाव एषिया और विष्व राजनैतिक धरातल पर नजर आता है। इस क्षेत्र में पानी विवाद एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो समय समय पर उभरकर सामने आया है। एक ओर बढ़ती जनसंख्या और घटते प्राकृतिक संसाधन है, तो दूसरी ओर उचित जल प्रबंध नीति का अभाव है। इस पूरे परिदृष्य में पानी विवाद अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तरों पर अलग अलग संघर्षों का रूप लेता दिखाई देता है।
फिलहाल दक्षिण एषिया के सात देषों में से तीन के साथ भारत का पानी का विवाद है जो कभी शांत हो जाता है तो कभी युद्ध जैसी स्थिति तक पहुंच जाता है। भारत की आजादी के बाद से ही पाकिस्तान व नेपाल के साथ पानी के बंटवारे को लेकर नोक झोक होती रहती है। जब बंग्लादेष का उद्भव हुआ उसके साथ ही गंगा और ब्रह्मपुत्र के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया।
अगर भारत पाकिस्तान के पानी विवाद पर नजर डालें तो 1960 में दोनों देषों के सिंध ुजल समझौता हुआ था जिसके तहत रावी, सतलज और व्यास भारत के हिस्से में आयी थी और सिंघु, झेलम और चिनाब पाकिस्तान के हिस्से में आयी थी। इस बंटवारे के बाद भी विवाद का हल नहीं हुआ और सिंघु नदी पर बने आयोग ने अभी तक 118 दौरे और 103 मीटिंगें हो चुकी है, विष्व बैंक से भी मध्यस्थता करवा ली लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला क्योंकि न तो दोनों सरकारें चाहती की इसका कोई हल निकले, जब पाकिस्तान में कोर्ठ आंतरिक अषांति होती है तब पहले तो कष्मीर के मुद्दे पर जनता को गुमराह किया जाता था लेकिन कष्मीर के मुद्दे से पाकिस्तान की जनता तंग आ गई इसलिये अब पानी के सवाल पर जनता को भटकाने की पाकिस्तान सरकार का नया ऐजेंडा है, यही हाल भारत का है। इन दोनों के बीच तीसरा अभिनेता अमेरिका जो कभी नहीं चाहता कि भारत पाक विवाद सुलझे क्योंकि दक्षिण एषिया में यह विवाद अमेरिका की विदेष नीति की कूटनीतिक सफलता के लिये अबूझ हथियार है। इसलिए वो विष्व बैंक के माध्यम से पानी विवाद को इधर उधर भटकाता रहता है। लेकिन अमेरिका प्राकृतिक संसाधनों को हड़पने की मुहिम में अब पानी पर भी नजर गड़ाए हुए है।
दक्षिण एषिया में पानी को लेकर विवाद इसलिए भी है कि यहां कि अधिकांष अर्थव्यवस्थायें कृषि पर निर्भरता रखती है। जिसके कारण नदीयों का पानी सिचाई का एक बहुत बड़ा साधन है। निजीकरण की इस दौड़ में प्राकृतिक संसाधनों का बेरहमी से दोहन हो रहा है और ऐसी स्थिति में राज्यों का आपस में लड़ना कोई नई बात नही है मगर भारत का पानी विवाद न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है बल्कि आंतरिक स्तर पर भी पानी विवाद एक बहुत बड़ी समस्या है, राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेष आदी राज्यों में भी पानी का विवाद एक बड़ा विवाद है जिसके बारे में सरकारीया आयोग ने भी सिफारिष की थी कि राज्यों के पानी विवाद को निपटाने के लिये केन्द्र को न्यायधिकरण स्थापित करना चाहिए मगर राजनीतिक स्वार्थों के चलते केन्द्र द्वारा ईमानदारी से किसी विवाद को निपटाने की जगह उसको रफा दफा कर दिया जाता है।
पिछले दिनों खबर आयी थी कि चीन ब्रह्मपुत्र को मोड़ने की कोषिष कर रहा जो भारत के लिए खतरनाक होगी और चीन ऐसा कर भी सकता है जो पिछले अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है। भारत पाकिस्तान का विवाद पानी की कमी के कारण होता है जबकि भारत नेपाल पानी विवाद इसके उल्टा है क्योंकि हर साल भारत नेपाल पर यही आरोप लगाता आ रहा है कि नेपाल के पानी छोड़ने से बाढ़ आ गयी और बिहार का बहुत बड़ा हिस्सा तबाह हो जाता है। दरअसल इस बाढ़ का जिम्मेदार नेपाल नहीं भारत खुद है क्योंकि कोसी नदी पर बने बांध के रखरखाव की जिम्मेदारी भारत की है। मगर दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि आजादी के 63 साल बाद भी एक तरफ हर साल बाढ़ आती है और एक तरफ अकाल के कारण लोग मर रहे है, इन सब के पीछे एक बड़ा कारण यही है कि उचित जल प्रबंध नीति हम अभी तक विकसित नहीं कर पाये है। नेपाल की तरफ से यह बात बार बार उठाई जाती है कि 1950 की भारत नेपाल संधी पर पुनर्विचार किया जाये, अगर सही मायने में देखा जाये तो समय के साथ परिस्थितियां व जरूरतें बदल जाती है और ऐसी स्थिति में संधी पर पुनर्विचार में कोई हर्ज नहीं है। हाल ही में भिखनाठोरी में नेपाल द्वारा पानी रोकने के मामले ने भारत को सोचने पर मजबूर कर दिया है, भिखनाठोरी नेपाल सीमा पर एक गांव है जो पास से ही पानी का उपयोग करता था जो नेपाल की सीमा में आता है, बस नेपाल ने पानी बंद कर यिा।1990 के दषक में महाकाली नदी को लेकर विवाद गहराया था जो अंतर्राष्ट्रीय दवाब के बाद सुलझ पाया था। वर्तमान प्रासंगिकता को देखते हुए संधी पर बातचीत करके समस्या का हल निकाल लेना चाहिए।
भारत और बंग्लादेष के बीच पानी का विवाद गंगा नदी को लेकर ज्यादा है जिसके पीछे बंग्लादेष का तर्क होता है कि उसे उचित पानी नहीं मिल पाता है और जो मिलता है वो भी दुषित। फरक्का बैराज को लेकर पहले पाकिस्तान के साथ भारत का विवाद था और जब बंग्लादेष का उदय हुआ तब से भी उसी रूप में बना हुआ है। बंग्लादेष की अर्थव्यवस्था भी कृषि पर निर्भर और सूखे व अन्य कारणेंा से पानी में कटोती होती है तो बहुत हद तक बंग्लादेष की अर्थव्यवस्था गडा़बड़ा जाती है, इस मामले को लेकर बंग्लादेष संयुक्त राष्ट्र संघ व विष्व बैंक की भी मध्यस्थता करवाई है लेकिन जब तक दोनों पक्ष कोई एक राय नहीं बना सकते तब तक हल मुष्किल है।

इस समय दक्षिण एषिया दुनिया का सबसे अस्थिर क्षेत्र माना जाता है क्योंकि ये क्षेत्र भूराजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है इसलिय एक तरफ अमेरिका नजर गड़ाये हुए है और दूसरी तरफ चीन भी पाकिस्तान से नजदीकीयां बढ़ाकर खुद को दक्षिण एषिया की राजनीति में शामिल करना चाहता है। अब स्थिति यह कि पानी को लेकर पाकिस्तान बढ़ा विवाद खड़ा करने की फिराक में है क्योंकि एक तो कष्मीर का मामला अब दम नही पकड़ने वाला है और दूसरा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने खुद को साफ दिखाने के लिये इसका सहारा ले सकता है। अतः भारत को भी सचेत रहना चाहिए लेकिन 2002 में बनी जल नीति में पानी के मालिकाना हक नीजि कम्पनियों को दे दिया जो नवउदारवादी नीतियों के तहत जल, जमीन और जंगल छिनने के एजेंडे की बड़ी सफलता है। दक्षिण एषिया का भविष्य पानी पर टिका हुआ है जिससे लगातार खिलवाड़ किया जा रहा है ऐसी स्थ्तिि में सार्क जैसे संघठनों को इन विवादों को सुलझाने में पहल करनी चाहिये क्योंकि बाहर का कोई यहां शांती चाहता ही नहीं है, चाहे अमेरिका हो या चीन।