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गुरुवार, 29 जनवरी 2009

उस रोज़
चंद लोग आए
मेरे गाँव में
सब की आंखों में
एक आशा थी
मग़र
वो आए और
चले गए
कुछ नही दिया
बस कहा
हम हिंदू है
वो मुसलमान
गाँव के लोग
कुछ नही समझे
मै और
मेरे दोस्त
आजकल पहरा देते है
रोकने के लिये
हम जानते है
वो दुबारा आगे
और कहेंगे
हम अलग अलग है