मेरे दादा की उम्र के दरमियाँ
एक सावन
दो रोटी
गोरे बालू के टीले की
छाती पर खडा
खेजडी का कंकाल था
गवाह मुजरिम और ज़ज
हर खुशी गम का हिसाब
इसकी जडो के सुखी छाल पर
छपा था
एक अनगढ़ भाषा में
बच्चपन में दोनों अनजान थे
अकाल और साहूकार से
बाजरे के पेड़ और बारिश की बूंद
दो दलाल है
उम्र के
एक को बढ़ना
दुसरे को घटना
1 टिप्पणी:
kam shabdon me isse jyada gahari baat nahi kahi ja sakti.........ummeed hai ye sandesh koi sun raha hoga
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