Ads for Indians

रविवार, 15 फ़रवरी 2009

वो तो एक आंचल था
क्यो डाला उस पर
पर्दा ???????
पागल भी था
क्यों दी उसे
कलम ????
स्वप्न था
क्यों दी उसे
जमीन????????
बीज था
क्यों दिया उसे
पानी ????
शराब थी
क्यों दिया
प्याला????????
आप बे ख़बर थे
वो गुलजार हो गया
अब हवा चली तो
खुशबू से क्यों डरते हो ???????

शनिवार, 31 जनवरी 2009

मेरी माँ

मेरी माँ
अलग है थोडी
दुनियाँ से
काला रंग
मिटी से सना शरीर
सर पर
गोबर
बिखरे बाल
पसीने से लर बतर
चहरे पर झुरिया
फटे कपड़े
वात्सल्य का सुखा समंदर
हाथों में छाले
पहले
अपने बाप के लिये
बाद में
मेरे बाप के लिये
अब
मेरे लिये
ढिबरी लिये
खोजती रही
चंद रोटी के टुकड़े
दौलत की गलियों से
झांक कर देखो
करोड़ों मांए है
शायद मेरी भी
उन में एक हो




मैच

आज दो काम हुए
एक भारत मैच जीता
दूसरा
रामू के बच्चा हुआ
और
आज ही रामू ने
खरीदा
एक बैट
मगर
उसकी बीवी को
प्रोटीन की कमी है
वाह रे मैच
आदमी को...................

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

उस रोज़
चंद लोग आए
मेरे गाँव में
सब की आंखों में
एक आशा थी
मग़र
वो आए और
चले गए
कुछ नही दिया
बस कहा
हम हिंदू है
वो मुसलमान
गाँव के लोग
कुछ नही समझे
मै और
मेरे दोस्त
आजकल पहरा देते है
रोकने के लिये
हम जानते है
वो दुबारा आगे
और कहेंगे
हम अलग अलग है

शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2008

राजस्थान के दो पहलु

राजस्थान के गुण गाने वालों के कंठों में खरखराहट भी नही होती क्योंकि उन्हें सिर्फ़ राजा महाराजो का राजस्थान दिखाई देता है। उन्हें वो राज्य नहीं दिखता जो खुले आसमान के निचे रहता है और बच्चपन जानवरों की गंदगी में बिताता है , ना उन्हें माँ का प्यार मिलता है क्योंकि माँ का प्यार तो ठाकुर के खेतों में काम करते करते सूख गया है और ना हि बाप की सीख।
ज़िन्दगी चाहे गदागर हि बना दे ।
ऐ माँ तू मेरा नाम सिकंदर रख दे ॥

शनिवार, 13 सितंबर 2008

जवानी की दहलीज

चूर चूर हो गए
मिटटी के घर
मिटटी के खिलौने
मगर इस मिटटी का
अलग ही वजूद
छू कर देखो
खून की गर्माहट
आंसू सी शीतलता
बच्चो के पसीने की
प्यारी सी खुसबू
महक रही थी
मै छटपटा उठा
इस जवानी के
दलदल से निकलने के लिय

बुधवार, 27 अगस्त 2008

शब्दों का जाल

शब्द
या शब्दों का जाल
एक ही तो है
शरारत
खामोशी को तोड़ने की
कभी हंसा देते है
कभी रुला देते
और क्या बताऊ
कभी तो सिंहासन
हिल्ला देते है
बस जरूरत है
लय में पिरोने की