Bahati Dhara
ले मशाले चल पड़े लोग मेरे गाँव के
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बुधवार, 27 अगस्त 2008
एक नकाब
एक नकाब
दो चहरे
गली से महल
चौराहे से अदालत
हर जगह वहम
असली या नकली
तभी एक चेहरा
झुरिया भूख की
नाचती आंखे
डरावना
सूखे पैरो से चलता
लड़खडाता, संभलता
अचानक सामने आ गया
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