Bahati Dhara
ले मशाले चल पड़े लोग मेरे गाँव के
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बुधवार, 27 अगस्त 2008
प्रतिबिम्ब
कितने गुजर गए
इस राह से
दादा बाप बेटा
यह निर्जीव
देखता रहा
उनके पैरो को
पैरो के निशानों को
उड़ती धुल को
सब एक जैसे ही
आते और निकल जाते
एक दिन
उसने सर उठाकर
चेहरे की तरफ देखा
चौंक गया
अपना ही प्रतिबिम्ब देखकर
1 टिप्पणी:
बेनामी ने कहा…
bahut achhi rachna hai.
15 सितंबर 2008 को 2:43 am बजे
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1 टिप्पणी:
bahut achhi rachna hai.
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