कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिये भारत सरकार ने कार्यसमूह गठित किया है और उस कार्य समूह के अध्यक्ष का मानना है कि दूसरी हरित क्रांति जरूरी है। एक तरफ देष में तिव्रगती से बढ़ती हुई जनसंख्या और दूसरी तरफ कृषि का लगातार पिछड़ापन एक भयानक खाद्यान्न संकट का संकेत देते हंै। ऐसी स्थिति में वैकल्पिक कृषि भारत का पेट भर सकती है, इसमें क्रांतिकारी सम्भावनाएं है। वैकल्पिक कृषि में श्रम की उपादेयता बढ़ जाती है, इसलिए यह रोजगार सृजन और बेरोजगारी का भी कुछ हद तक निवार्ण करने में सहायक है। कृषि क्षेत्र में ज्ञान के नियमित प्रयोग और स्थानीय संसाधनों के बढ़ते प्रभाव के कारण कृषि में विकेंद्रीकृत विकास की अपार संभावनाएं नजर आती है। इन सबके बावजूद एक अहम सवाल खड़ा होता है कि क्या वैकल्पिक कृषि खाद्यान्न संकट से निजात दिला सकती है ? दुनियांभर में जैविक कृषि पर हुए अध्ययनों से स्पष्ट है कि यह लघु और सिमान्त किसानों के लिये उपयोगी है क्योंकि एक तो इसमें उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई है और दूसरा कारण है कि छोटी जोतों पर नए नए प्रयोग आसानी से किये जा सकते है। लेकिन वैकल्पिक कृषि अपनाने वालों के प्रषिक्षण पर भी इसकी उत्पादकता और गुणवता निर्भर करती है और भारत में दूसरी हरित क्रांति के लिये जरूरी है कि उचित प्रषिक्षण, तकनीकी और उन्नत किस्म के बीज व रासायनिक उर्वरक उपलब्ध कराये जायें। जहां तक किमतों का सवाल है तो यूरोप के देषों का अनुभव बताता है कि सामान्य बाजार भावों में भी वैकल्पिक कृषि मुनाफा कमा सकती है क्योंकि इसकी प्रति हैक्टेयर उत्पादन लागत कम होती है और उत्पादन की मात्रा भी तुलनात्मक रूप से ज्यादा होती है।
अब अगर वैकल्पिक कृषि के नकारात्मक पहलूओं की चर्चा करें तो इससे स्थानीय बीजों, पशुधन एवं परम्परागत ज्ञान नष्ट होता है और इसी कारण विष्व बाजार में विकासषील देषों के उत्पाद विकसित देषों की तुलना में पिछड़ जाते है। वैकल्पिक कृषि में प्रयोग में ली जाने वाली प्रक्रियाएं स्थान और फसल विषेष के लिये होती हैं उन्हें हर जगह ज्यूं का त्यूं इस्तेमाल में नहीं लाया जा सकता है और भारतीय संदर्भ में देखा जाये तो इतनी ज्यादा भौगोलिक और प्राकृतिक विभिन्नताएं है कि वैकल्पिक कृषि पद्धति पर ही प्रष्नचिंह खड़ा हो जाता है। भारत में छोटे छोटे किसानों के पास इतना पैसा नहीं होता है कि वो उन्नत तकनीक और रासायनिक बीजों का प्रयोग कर सकें और न ही उन्हें वक्त व जरूरत के अनुसार बैकों से ऋण मिल पाता है। 2007 की राष्ट्रीय किसान नीति में भी जैविक कृषि को कुछ चुनिंदा क्षेत्रों के लिये ही उपर्युक्त माना है क्योंकि अभी तक भारत में इस संदर्भ में शोध व प्रयोग ही बहुत कम हुआ है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार हमारी भूमि का दो तिहाई हिस्सा लगभग विकृत हो चुका है और लगातार कृषि योग्य भूमि में कमी आ रही है क्योंकि परम्परागत कृषि पद्धतियों से इतनी बड़ी जनसंख्या के लिये खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना मुष्किल है। ऐसी स्थिति में अगर वैकल्पिक कृषि को नहीं अपनाया गया तो आने वाले समय में भूख भारत की सबसे बढ़ी समस्या होगी। कुछ लोगों का तर्क होता है कि वैकल्पिक कृषि कितनी भी अच्छी हो लेकिन मषीनीकरण और आधुनिककरण के कारण कृषि में श्रमशक्ति घट जायेगी और बेरोजगार बढ़ जायेगी परन्तु उत्पादन और तकनीक के विकास के साथ गांवों में नये नये रोजगारों का सृजन होगा जिससे बेरोजगारी भी कम होगी और गांव से शहर की तरफ होने वाले पलायन में भी गिरावट आयेगी। क्योंकि जब गांव में ही रोजगार मिल जायेगा तो मजबूरी में होने वाले पलायन पर तो रोक लग ही जायेगी।
भारत में वैकल्पिक कृषि के विकास के लिये जरूरी है कि सराकर उचित संसाधन और तकनीक उपलब्ध कराये, साथ ही साथ भौगोलिक विभिन्नताओं को देखते हुए अलग अलग क्षेत्र के लिये विषेष शोध कराकर उसे किसानों तक पहुंचाये ताकि समय पर उससे किसान लाभांवित हो सके। दूसरी हरित क्रांति का रास्ता वैकल्पिक कृषि से होकर ही जायेगा, इसके लिये सरकार और किसान दोनों को तैयार रहना चाहिए क्योंकि शरूआती दौर में बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। मूलतः समाज और सरकार को वैकल्पिक कृषि को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि आने वाले समय में भारत और दुनियों को खाद्यान्न संकट से यही उभार सकती है। जरूरा नहीं है कि सभी फसलों में वैकल्पिक कृषि को अपनाया जाये क्योंकि जिन फसलों में परम्परागत ज्ञान से कम खर्चे पर अच्छी उपज प्राप्त हो रही है उन्हें उसी प्रकार से चलने दिया जाये। इस प्रकार एक स्तर पर परम्परागत कृषि और वैकल्पिक कृषि में सामंजस्य भी जरूरी है। चाहे किसानों की आत्महत्यों का सवाल हो या कृषि क्षेत्र में बढ़ती अन्य समस्याएं, वैकल्पिक कृषि इन सब का एक हल प्रस्तुत करती है। देष में कुछ जगहों पर इसके प्रयोग चल रहे है जो बहुत हद तक सफल भी है मगर अब इसे बड़े फलक पर उतारकर दूसरी हरित क्रांति का शंखनाद करना समय की मांग है।
वैकल्पिक कृषि को अपनाने के लिये किसानों और सरकार को एक दूसरे का सहयोगी होना पड़ेगा।
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