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रविवार, 18 जुलाई 2010

कामनवेल्थ: कौन कामन, किसका वेल्थ?


जैसे-जैसे अक्टूबर का महीना नजदीक आता जा रहा है वैसे ही सरकार की बैचनी बढ़ती जा रही है। दिल्ली को ‘वल्ड़ क्लास’ शहर दिखाने के लिए सौन्दर्यकरण के नाम पर करोड़ों रूपये पानी की तरह बहाये जा रहा है। जब देष में विष्व के 40 प्रतिषत भूखे लोग रहते है, 46 प्रतिषत बच्चे और 55 प्रतिषत महिलाएं कुपोषण के षिकार है। ऐसी स्थिति में सरकार हजारों करोड़ रूपये 12 दिन के खेल आयोजन पर खर्च कर रही है जिसका फायदा कम नुकसान ज्यादा नजर आ रहा है। इस खेल की आड़ में दिल्ली सरकार बहुत से मुददे भुनाना चाहती है, जंैसे- दिल्ली में हजारों बेेघरों के लिए सामाजिक सुरक्षा का कोंई इंतजाम नहीं है, रोजगार के अभाव में गांव से पलायन करके षहर आये हुए असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के जीवन की मूलभूत सुविधाओं और झुग्गी बस्तीयों में रहने वाले लाखों लोगांे के बेहतर जीवन के लिए तो सरकारी खजाना खाली हो जाता है मगर 12 दिन के खेल के लिए 30,000 करोड़ रूपये खर्च किये जा रहे है। अगर इतिहास को देखे तो एषियार्ड खेलों के लिए सरकार ने देष भर से जो मजदूर बुलाए थे उनकी मेहनत से खेलों का आयोजन तो सफल हो गया मगर उनके रोजगार व सामाजिक विकास की स्थिति बदतर हो गई है। क्योंकि सरकार का मानना है कि शहर के सौदन्र्यकरण के नाम पर मजदूर ऊंची ऊंची बिल्डिंग ंतो खड़ी करें मगर वो इसकी सुन्दरता मे खलल न बनें। सरकार को एक तरफ सस्ते मजदूर भी चाहिये और दूसरी तरफ उनके प्रति कोई सामाजिक व नैतिक जिम्मेदारी लेने के लिये भी तैयार नहीं है और इसी दोहरी नीति के चलते शहर को सुन्दर बनाने और सजाने वाला मजदूर शहर से अलग कच्ची काॅलोनीयांे और झुग्गी बस्तीयांे में रहने को मजबूर है, जहां पर स्वस्थ पानी, बिजली, स्वास्थ्य और षिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों का अभाव पाया जाता है। काॅमन वेल्थ की झुठी शान में सड़कों को चैड़ा करने के बहाने रेहड़ी-पटरी रिक्षा-ठेला और सड़कों के किनारे रोजी रोटी चलाने वाले लोगों को हटा रही है ओर उनके लिये कोई अन्य व्यवस्था भी नहीं की जा रही है। खेल के इसी लपेटे में राजीव रत्न आवास योजना के तहत 44 झुग्गी बस्तीयों को हटाने का भी फरमान है लेकिन मजेदार बात यह है कि इन 44 बस्तीयों को 7900 फ्लेटों में षिफ्ट किया जायेगा। इस फ्लैट आवंटन के नाम पर लाखों लोगों को उजाड़ा जायेगा।
काॅमन वेल्थ खेल का खर्चा 10000 से बढ़कर 30000 करोड़ तो हो गया है लेकिन यह कहना मुष्किल है कि इस पैसे काम चल जायेगा। अब सवाल उठता है कि कौन काॅमन है और किसका वेल्थ है जिसके लिये पूरे दिल्ली शहर को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है। चंद लांगों के इस खेल के आयोजन में, जो अंग्रेजों की गुलामी की याद को ताजा करता हो उसका सबसे ज्यादा सामाजिक आर्थिक प्रभाव दिल्ली के गरीब औरतों, बच्चों, बेघरों, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों और रिक्षा-ठेला वालों पर पडे़गा। सड़कों को साफ व सुंदर करने के लिये सड़क के किनारे से सभी ठेले और छोटी दुकानों को हटाया जायेगा क्योंकि विदेषीयों को भारत की असली तस्वीर दिखाने की बजाय एक बनी बनाई छवि दिखाई जाये ताकि उन लोगों को लगे कि भारत ने अभूतपर्व प्रगति की है।
काॅमन वेल्थ के लिये दिल्ली में सैंकड़ों करोड़ रूपये लगाकर ‘खेल गांव’ का निर्माण किया जा रहा है, वहां से गरीब लोगों की बस्तीयों को उजाड़ दिया है मगर खेल के बाद यह फ्लैट अमीरों का अड्डा बनने वाले है। झारखण्ड व छतीसगढ़ जैसे प्रदेष जहां पर खेलों के लिये पर्याप्त सुविधाओं की जरूरत है वहां पर प्राथमिक सुविधाएं भी नहीं है। अभी जो स्टेडियम बन रहे हैं क्या सरकार उनका रखरखाव ठीक तरिके से कर पायेगी? चीन में ओलंपिक के आयोजन के लिये जो स्टेडियम बनाये थे उनका रखरखाव करना आर्थिक रूप से भारी बड़ रहा है जबकि चीन की खेल संस्कृति विकास का एक स्तर प्राप्त कर चुकी है। अगर इन खेल स्टेडियमों का उचित संरक्षण व उपयोग नहीं कर पाये तो करोड़ों रूपये के निवेष का कोई सार्थक उपयोग नहीं हो पायेगा और यह सीख हमें 1982 के एषियार्ड खेलों से ले लेनी चाहिये जिसमें लगाई गई मानवीय श्रम व पंूजी की ठीक से उपयोग होता तो आज काॅमन वेल्थ का बजट 30000 करोड़ तक नहीं पहुंचता।
ऐसे आयोजनों से न तो खेल का भला होने वाला और न ही आम नागरीको का बल्कि दिल्ली में रहने वाला हर आम आदमी इन 12 दिनों के खेलीय महोत्सव से प्रभावित होगा। दिल्ली विष्वविधालय और जामिया के छात्रों को अभी से छात्रावास खाली करने पड़ रहे है और इनका जो खर्चा कामन वेल्थ के नाम पर होगा उनकी कही भी कोई गिनती नहीं हो रही है। दिल्ली का हर आम नागरिक कामन जरूर है मगर वेल्थ में उसका कोई हिस्सा नहीं है।

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