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रविवार, 27 जून 2010

भूमाफियाओं का जाल

तीव्र गति में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण जमीन को लेकर पूरे देष में मारा मारी चल रही हैै। रोजगार के अवसरों की कमी, खेती की पैदावार में गिरावट और प्राकृतिक प्रकोपों की वजह से लगातार गांवों से शहरों की ओर पलायन बढ़ रहा है। इन पलायन करने वालों में मजदूर से लेकर छोटे व्यापारी और षिक्षित युवा वर्ग भी शामिल है। शहरों में सीमित संसाधनों की वजह से रहने के लिये जमीन का अभाव हो रहा है, ऐसी स्थिति में छोटे से लेकर बडे शहरों तक भूमाफियाओं के जाल बिछे हुए है जो अवैध रूप से रोज करोड़ों की जमीन पर कब्जा करते हैं। जमीन पर कब्जा करने वाले इन भूमाफियाओं के बड़े-बड़े गिरोह है, जिनमें वो बेरोजगार युवक भी शामिल है जिनकी आमदनी का अन्य कोई साधन नहीं होता है। ये दिन भर इसी चक्कर में धुमते रहते है कि कौन सी जमीन का मालिक कहां रहता है और उसकी स्थिति कैसी है यानी उसके स्टेटस का पूरा बायोडाटा इनकी खोज का विषय होता है। इसी के तहत ये माफिया ईज्जत और शोहरत पाते है जिसे देखकर छोटे शहरों के युवा उसी रास्ते पर चलने की ठान लेते हैं। यह तो इनका प्राथमिक व्यवसाय है उसके बाद सड़क के ठेकों से लेकर राजनीति तक के ठेके इनकी बायीं जेब में पड़े रहते है। अगर इनके कब्जे करने के तरिकों को देखा जायंे तो साफ समझ में आता है कि प्रषासन का भी उसमें हाथ हैं। नकली रजीस्ट्री और किसी भी जमीन पर रात भर में मकान खड़ा कर देता बिना प्रषासनिक मिली भगत के सम्भव ही नहीं हो सकता। कानून से बचने के भी इन्होने अनोखे तरिके निकाल रखे है, बहली बात तो ये किसी को मारते नहीं केवल आम जनता में भय फैलाये रखते है और अगर कोई गलती से मर भी जाता है तो उस अपराध को किसी दूसरे के सर पर डाल देते, जो लोग वो पहले से ही तैयार रखते है। बड़े-बडे़ भूमाफियाओं के तार राजनीतिक रूप से भी मजबूत होते है क्योंकि ये नेताओ की कमाई के साधन भी है और जनता में भंयकर रूप से भय बनाये रखते है जिनका राजनीतिक फायदा भी उठाया जाता है, इस तमाम उठापटकों में नुकसान जनता को ही मिलता है। राजनीति में पकड़ होने की वजह से सरकारी जमीन पर भी बड़े पैमाने पर कब्जा हो रहा है, धर्म के नाम पर भी सैंकडों एकड़ जमीन पर तथाकथित बाबों द्वारा कब्जा करना जारी है, इस खेल में सरकारी अधिकारीयों से लेकर राजनेताओं तक की सांझेदारी होती है। पुलिस भूमाफिया गठजोड़ तो इतना मजबूत है कि जिले में आने वाला हर अधिकारी इनसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध रखता है, जब इस गठजोड़ के बीच आपस में खिंचातानी हो जाती है तब जाकर कहीं मामला सामने आता है। हर जिले से लेकर पूरे देष में भूमाफियाओं का जाल इतना फैला हुआ है कि रोज ऐसी घटनाए सामने आ रही है मगर सरकारें फिर भी चुप है, इनके खिलाफ कानून बनाकर सजा देने के बजाय शह दीये जा रही है, अवैध धंधों से आने वाले काले धन का कोई हिसाब न तो आयकर विभाग के पास है और न ही पुलिस प्रषासन के पास। कानूनी प्रक्रिया के जटिल और खर्चीली होेने के कारण आम इंसान इस जुल्म को सहता रहता है। धन बल के आधार पर ये माफिया फिर राजनीति में आ जाते, जनता को डर दिखा कर वोट ले लेते है फिर तो पूरे पांच साल लूटने का लाइसेंस ही मिल जाता है। अगर इस बात की जांच हो कि देष के सता के गलियारों में बैठे हुये लोगों में से कितने माफिया है या माफियों से उनके तार जुड़े हुए है, तब गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे। आजकल इन भूमाफियाओं का निषाना जंगल और बंजर पड़ी हुई जमीन है, जंगलों पर लगातार हमले करके वहो रहने वाले आदवासीयों का जीना दुभर कर दिया है। इनके अलग अलग गुट होतें जिनका अलग अलग राजनीतिक दलों से तालुक होते है, इसी कारण कभी कभी इन गुटों के मध्य लड़ाई झगड़े भी सामने आते है जिससे एक विषेष प्रकार का भय व्याप्त माहौल बन जाता है और इन्हीं झगड़ों का बखान लम्बे समय तक करके अपनी गेंग बनाये रखते है। फिर खुद की छवी को राजनीति के सांचे में फिट करने के लिये ये समाज सेवा का ढ़ोंग रचते है क्योकि इससे एक तो आसानी से काले धन को सफदे मुद्रा में बदला जा सकता है और चुनाव जीतने में भी आसानी रहती है। ऐसे लोगों से जन सेवा की आषा नहींे करना चाहिए। अगर हमें देष के लोकतंत्र को बचाना है तो ऐसे लोगों को राजनीति में आने से रोकना होगा, चाहे वो किसी भी दल या विचाराधारा के क्यों न हो।

2 टिप्‍पणियां:

ab inconvenienti ने कहा…

हर जगह अन्याय है. लगता है मेरे ही शहर की बात कर रहे हों.
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पोस्ट को पैराग्राफ में बाँट दें तो पढने में आसानी रहेगी.

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

मेरे शहर में तो इस मामले को लेकर खूनी खेल खेला जा रहा है। एक तरफ रसूखदार मंत्री और उसके परिजन है और एक ओर असहाय ग्रामवासी..... पांच दिन पहले जमीन को लेकर हुए खूनी विवाद में एक गरीब की जान ही ले ली।