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शनिवार, 5 जून 2010

मंटो को खत

सुबह उठते ही मुझे याद आया कि आज तो 11 मई है, उर्दू के महान कथाकार सहादत हसन मंटो का जन्मदिन है। मंटो का ख्याल आते ही ‘टोबा टेक सिंह’ से लेकर ‘ठंडा गोस्त’ तक यानी पूरा मंटो मेरे सामने खड़ा हो गया, बिल्कुल होषोहवास में। मुझे तो भरोसा ही नही हो रहा था कि मंटो जैसा बिंदास आदमी बिना पीये आज ख्याल में कैसे आ गया? इस सवाल का जवाब मैंने खुद ही तलाषा क्योंकि तब तक मंटो मेरे ख्याल से जा चुका था, शायद कड़वी शरबत पीने। उर्दू का सर्वाधिक विवादित और चर्चित लेखक मंटो कि पहचान थी कि उसके साहित्य में कुछ भी बनावटी नहीं था, जो समाज में देखा उसे बेझिझक और बिना डरे हुए सपाट तरिके से बयां किया। समाज का झुठा गिलाफ उधेड़ने के बदते में उसे वो सब भी सहन करना पड़ा जो शायद लीक से हटकर न लिखता तो नहींे सहना पड़ता और वो ही उसकी पहचान है। वो वक्त भी ऐसा वक्त था जब हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दो अलग अलग मुल्क बन रहे थे, बेहिसाब लोग मारे जा रहे थे ओर मंटो जैसी बैचेन रूंह अमन के रास्ते ढूंढ़ रही थी। न इधर कोई हुकूमत थी न उधर, अब आप ही बताये कि ऐसा आदमी जो सोचने का काम दिमाग से नहीं दिल से करता हो वो इन परिस्थितियों में होष में कैसे रह सकता है? लेकिन वो ही अकेला होष में था बाकि सब होष खो चुके थे, मर रहे थे और मार रहे थे- इधर से भी, उधर से भी। मंटो ने जिस भी विषय को उठाया, उसकी गहराई तक जाकर, बड़ी ही बारकी से हर पहलू को उकेरा। कभी कभी लगता है कि मंटो असल में एक ऐसा कहानीकार था जो कहानी के हर पात्र के दिल और दिमाग को पकड़ता था। उसके साहित्य में खुबसुरत शब्दों की कमी थी लेकिन मानवीय मनोविज्ञान से वो ऐसा परिदृष्य गढ़ देता है कि पाठक को मानसिक रूप से झकझोर देती है। मंटोे के साहत्यि की विषय, शैली, प्रवृति और विविधता उसे दक्षिण एषिया का प्रतिनिधि कथाकार बना दिया, ‘टोबा टेक ंिसंह’ तो विष्व कर कालजयी रचनाओं में शामिल है। अष्लीलता के आरोप में मंटो पर कई मुकदम भी चले मगर पाठक मंटो का कायल था और आज भी है। जब भी कुछ पढ़ने का मन न करे मंटो को उठा लीजिये, हर बार कुछ नया मिल ही जायेगा। जो लोग उस वक्त मंटो को अष्लील कहते थे, वो तो आज भी कह सकते है क्योंकि समाज में औरत और मर्द के के रिष्तों को लेकर तो अभी भी वो ही मान्यताएं है, चाहे हिन्दुस्तान हो या फिर पाकिस्तान। बस! आज का दिन मंटो की तरह जीना था, सोचा कोई कहानी लिखुं। बहुत सोचा लेकिन कोई विषय वस्तु ही नही नजर आ रही थी। वैसे तो कई विषय थे, जैसे- मेरे गांव की लड़की अपनी ही जात के लड़के से प्रेम कर लिया और उसे जात पंचायत ने मौत की सजा सुना दी, उर्मिला को इसलिये जहर दिया गया कि वो विधवा होकर किसी से संबंध रखती थी, ऐसे अनेक उदाहरण थे जिन पर कहानी लिख सकता था लेकिन मेरे परीवार को उस गांव में ही रहना था। मैं कितना डरपोक हूं और तुम कितने निडर थे। सो, मैंने इस विचार को त्याग दिया और सोचा शहर का ही कोई विषय चुन लेता हूं। एक विषय पर कहानी लिखना भी शुरू कर दिया, हर लाइन लिखकर तेरे से तुलना करता तो कहानी लिखने का इरादा हमेषा के लिये त्याग देता। गजब का आदमी था और लिखने का भी गजब का अंदाज था। कुछ लोग कहते है कि वो तरक्कीपसंद था, कुछ कहते है कि अष्लील था मगर हकिकत तो यह है कि उसे किसी भी सांचे में फिट नहीं किया जा सकता है उसका आकार ही निराला था, जो भी हो वो कलम का सच्चा सिपाही जरूर था। रात के वक्त गंदा पानी पीकर लिखने बैठ गया, कुछ तो लिखना ही था क्योंकि आज मेरे प्रिय कथाकार का जन्मदिन था। जो लिखा वो मंटो के नाम एक पत्र था और उसे बड़ी ईमानदारी से आपके हवाले करता हॅूं-
‘देखो मंटो! मैने आज का पूरा दिन तेरी तरह जीने की कोषिष की है और शायद कुछ हद तक जी भी लिया, तेरी नजर से दुनियां को समझने की कोषिष की और थोड़ा बहुत समझ भी लिया लेकिन जब तेरी तरह से लिखने कि कोषिष की तो तो काली सलवार मेरा पिछा ही नहीं छोड़ रही थी..............अब देख भई! तुने मेरे ख्यालात चुराये है और उनकी किमत तुझे चुकानी पड़ेगी। बतादे यार! कैसे लिखता था तू?’