Bahati Dhara
ले मशाले चल पड़े लोग मेरे गाँव के
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शनिवार, 13 सितंबर 2008
जवानी की दहलीज
चूर चूर हो गए
मिटटी के घर
मिटटी के खिलौने
मगर इस मिटटी का
अलग ही वजूद
छू कर देखो
खून की गर्माहट
आंसू सी शीतलता
बच्चो के पसीने की
प्यारी सी खुसबू
महक रही थी
मै छटपटा उठा
इस जवानी के
दलदल से निकलने के लिय
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