Ads for Indians

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

उस रोज़
चंद लोग आए
मेरे गाँव में
सब की आंखों में
एक आशा थी
मग़र
वो आए और
चले गए
कुछ नही दिया
बस कहा
हम हिंदू है
वो मुसलमान
गाँव के लोग
कुछ नही समझे
मै और
मेरे दोस्त
आजकल पहरा देते है
रोकने के लिये
हम जानते है
वो दुबारा आगे
और कहेंगे
हम अलग अलग है

5 टिप्‍पणियां:

MAYUR ने कहा…

बहुत शानदार

Unknown ने कहा…

bahut-khub mere dost !!!

Yugal ने कहा…

शुभकामनाएं

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहूत शशक्त अच्छी अभिव्यक्ति........सटीक विचार
शुभ कामनाएं आपको बसंत की

तरूश्री शर्मा ने कहा…

बढ़िया कहा। कुछ लोग सिर्फ बांटने के लिए ही आते हैं औऱ उन पर पहरा लगाना जरूरी है। बढ़िया कविता।